जीवन बीमा का मुख्य उद्देश्य बीमा खरीदने वाले व्यक्ति की असमय मृत्यु होने पर उसके परिवार को आर्थिक सुरक्षा देना है।
जीवन बीमा के शुरुवाती वर्षों में परंपरागत लाइफ इंश्योरेंस काफी चलन में था। 1982 में जब टैक्स इक्विटी और फिस्कल रिस्पॉन्सिबिलिटी एक्ट (TEFRA) कानून बना तो बाजार ब्याज के प्रति संवेदनशील हो गई। लोगों ने महसूस करना शुरू किया की परंपरागत लाइफ इंश्योरेंस में इतना प्रीमियम देकर वह रिटर्न नहीं मिलता जो दूसरी जगह निवेश करने पर मिलता है। यहाँ से शुरुआत हुआ टर्म इंश्योरेंस का, जहाँ कम पैसा देकर परंपरागत लाइफ इंश्योरेंस से ज्यादा कवरेज मिलता था । बाकी बचा पैसा लोगों ने अन्य जगह लगाना शुरू किया जहाँ से उन्हें बेहतर रिटर्न मिलने लगे। आज बाजार में टर्म इंश्योरेंस और परंपरागत लाइफ इंश्योरेंस दोनों ही कारोबार कर रहे हैं। अब यदि कोई लाइफ इंश्योरेंस खरीदना चाहता है तो उसे दोनों तरह के इंश्योरेंस से जुडी कुछ जरुरी बातों का अंतर मालूम होना चाहिए, जिससे वह अपने लिए सही चुनाव कर सके , जैसे -
दोनों के बीच बुनियादी अन्तर - परंपरागत लाइफ इंश्योरेंस व्यक्ति को पूरे जीवनकाल तक सुरक्षा देता है। यदि व्यक्ति की असमय मृत्यु हो जाए, तो एक तय की हुई रकम उसके परिवार को बीमा कंपनी देती है, और यदि व्यक्ति जीवित रहता है तो प्रीमियम के तौर पर भरा गया पैसा बीमा अवधि समाप्त होने के बाद कुछ इंटरेस्ट के साथ लौटा दिया जाता है।
इसके विपरीत टर्म इंश्योरेंस एक निश्चित आयु सीमा तक बीमा कवरेज देता है जो व्यक्ति के उम्र के हिसाब से 10, 20 या 30 साल तक दिया जाता है। टर्म इंश्योरेंस की अवधि के दौरान यदि पॉलिसी होल्डर की मृत्यु हो जाती है तो एक बड़ी रकम इंश्योरेंस कंपनी उसके परिवार को देती है । लेकिन अगर वह पॉलिसी की अवधि के बाद भी जीवित रहता है तो बीमा कंपनी किसी को कोई पैसा नहीं देती।
प्रीमियम और कवरेज – परंपरागत लाइफ इंश्योरेंस का प्रीमियम टर्म इंश्योरेंस के प्रीमियम से महँगा होता है। यदि एक 30 साल का युवक 25 साल के लिए 25 लाख रुपये का इंश्योरेंस कवरेज चाहता है, तो टर्म इंश्योरेंस का प्रीमियम सालाना लगभग 4000 रुपये होगा, वहीँ ट्रेडिशनल लाइफ इंश्योरेंस का प्रीमियम लगभग 21,000 रुपये सालाना पड़ेगा। यहाँ यह जानना जरूरी है कि व्यक्ति की सालाना कमाई को ध्यान में रखकर इंश्योरेंस कंपनी कवरेज तय करती है।
सम ऐशयोर्ड - सम ऐशयोर्ड एक पूर्व-निर्धारित रकम है जो पॉलिसी खरीदते समय तय किया जाता है, और समय आने पर, परिस्तिथि के अनुसार इंश्योरेंस कंपनी पॉलिसीहोल्डर या नोमिनी को अदा करती है।
टर्म इंश्योरेंस में प्रीमियम कम, पर सम ऐशयोर्ड बहुत ज्यादा है, जैसे 10,000 रुपये का सालाना प्रीमियम भरने पर 1करोड़ तक का सम ऐशयोर्ड संभव है। वहीँ ट्रेडिशनल लाइफ इंश्योरेंस में सालाना प्रीमियम ज्यादा है, पर उसके मुकाबले सम ऐशयोर्ड काफी कम। जैसे 21,000 रुपये सालाना की प्रीमियम पर लगभग 25 लाख रुपये का सम ऐशयोर्ड मिलता है।
मेच्योरिटी बेनिफिट- पॉलिसी तब मेच्योर होता है जब पॉलिसी होल्डर के जीवित रहते पॉलिसी का समय पूरा हो जाता है।
टर्म इंश्योरेंस में कोई मेच्योरिटी बेनिफिट नहीं है। इसे बनाया ही इस तरह से गया है कि जब टर्म इंश्योरेंस मेच्योर होता है तो बीमा का कवरेज अपनेआप समाप्त हो जाता है।परंपरागत लाइफ इंश्योरेंस में सुरक्षा और बचत दोनों है, इसलिए इसमें मेच्योरिटी बेनिफिट है। पॉलिसी का समय पूरा होने पर, पॉलिसी में पहले से तय राशि के साथ बोनस आदि जोड़कर इंश्योरेंस कंपनी व्यक्ति को वापस देती है।
लोन लेने की सुविधा - कुछ ट्रेडिशनल लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी में लोन लेने की सुविधा है। एक समय तक लगातार प्रीमियम देने के बाद जब आप एक निर्धारित रकम जमा कर लेते हैं तो जरुरत पड़ने पर आप अपनी जीवन बीमा पॉलिसी से ऋण ले सकते हैं। हालांकि आपके द्वारा लोन लिया गया पैसा आपकी पॉलिसी के जीवन बीमा हिस्से से मृत्यु लाभ को कम कर सकता है।
इसके विपरीत टर्म इंश्योरेंस में इस तरह की कोई सुविधा नहीं है, क्योंकि इसका प्रीमियम सस्ता होता है, और इसमें पैसा इकटठा नहीं होता। सिर्फ बीमाधारक की मृत्यु होने पर परिवार को मृत्यु लाभ दिया जाता है।
सरेंडर वैल्यू -
एक बार जब आप बीमा पॉलिसी से बाहर निकलने का निर्णय लेते हैं,तो बीमा सुरक्षा कवर के साथ इससे जुड़े सभी फायदे भी ख़त्म हो जाते हैं। टर्म इंश्योरेंस में जैसे ही प्रीमियम भरना बंद, वैसे ही पॉलिसी खत्म, और कोई सरेंडर वैल्यू भी नहीं मिलता क्योंकि टर्म इंश्योरेंस में सिर्फ मृत्यु होने पर ही पैसा मिलता है।
वहीँ पारम्परिक इंश्योरेंस में कुछ निश्चित समय तक लगातार प्रीमियम भरने के बाद यदि आप इंश्योरेंस पॉलिसी छोड़ते हैं तो जो भी आपकी बचत और कमाई है उसमे से सरेंडर चार्ज काट लिया जाता है। बाकि बचा पैसा आपको मिल जाता है।
लाइफ इंश्योरेंस में कन्वर्टेबिलिटी-
अगर आप 50 -60 साल की उम्र के आसपास हैं, और आपका टर्म इंश्योरेंस ख़त्म होने वाला है, पर आप आगे भी लाइफ इंश्योरेंस कवर चाहते हैं, लेकिन इस उम्र में टर्म इंश्योरेंस का प्रीमियम महंगा हो गया है, तो टर्म लाइफ इंश्योरेंस को ट्रेडिशनल लाइफ इंश्योरेंस मैं बदला जा सकता है। इसी को कन्वर्टेबिलिटी कहते हैं। सिर्फ टर्म लाइफ इंश्योरेंस का ट्रेडिशनल लाइफ इंश्योरेंस में बदल पाना संभव है। इसके लिए ज़रूरी है कि टर्म इंश्योरेंस लेते समय साथ में "कन्वर्टेबिलिटी" का राइडर जरूर लिया जाए।
टैक्स में राहत -
टर्म इंश्योरेंस और ट्रेडिशनल लाइफ इंश्योरेंस दोनों ही इनकम टैक्स में राहत देने का काम करते हैं।
टर्म इंश्योरेंस या पारम्परिक इंश्योरेंस के बीच चुनाव करना बहुत ही मुश्किल है परन्तु हम यह सलाह देते है की पहले अपने परिवार की आर्थिक सुरक्षा के लिए एक व्यक्ति को एक बड़ा टर्म इंश्योरेंस लेना चाहिए और उसके बाद अगर इन्वेस्टमेंट करने के लिए पैसे है तो अपनी क्षमता के अनुसार एक पारम्परिक जीवन बीमा पालिसी भी लेनी चाहिए।
आप चाहे कोई भी इंश्योरेंस कवरेज और इंश्योरेंस कंपनी का चुनाव करें, लेकिन एक बात ज़रूर जाँच लें कि उस कंपनी का क्लेम सेटलमेंट रेट क्या है, क्योंकि क्लेम सेटलमेंट बीमा का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। (क्लेम सेटलमेंट की जानकारी)
लेख में लिखी गई बातें जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से हैं। इस विषय को गहराई से जानने के लिए बाजार में मौज़ूद लाइफ इंश्योरेंस कंपनियों से सीधे जानकारी प्राप्त करें।