इंश्योरेंस कई प्रकार के होते हैं जैसे होम, लाइफ, व्हीकल, ट्रेवल आदि। कोई भी व्यक्ति इंश्योरेंस इसी आशा से खरीदता है कि समय पर लिया गया फैसला, जीवन में आगे आने वाली संभावित परेशानियों और बीमारियों से लड़ने में आर्थिक मदद करेगा। लेकिन जाने- अनजाने इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदते समय कुछ ऐसी गलतियाँ हो जाती हैं, जिसकी वजह से समय आने पर वह उम्मीद के अनुरूप परिणाम नहीं देते, और बाद में पछतावा होता है। इंश्योरेंस खरीदते समय होने वाली कुछ इसी तरह की गलतियाँ हैं –
- अंडर इंश्योर्ड रहना -अंडर इंश्योर्ड का मतलब है जितने इंश्योरेंस कवर की जरुरत है उससे कम का इंश्योरेंस कवर लेना। यह दो सूरत में हो सकता है। या तो जानकारी न होने की वजह से कम कवरेज वाला इंश्योरेंस प्रोडक्ट खरीद लिया गया, या प्रीमियम पर पैसे बचाने के चक्कर में कवरेज से ध्यान भटक गया । जैसे होम इंश्योरेंस के प्लान में आग और पानी से होने वाले नुकसान का कवरेज तो ले लिया लेकिन बाढ़ के पानी से होने वाले नुकसान का ऐड ऑन नहीं लिया, जबकि घर ऐसी जगह पर बना है जहाँ हर साल बरसात के मौसम में बाढ़ आती है और घर के साथ घर के सामान को भी बहुत नुकसान पहुँचता है। इसी तरह कम प्रीमियम पर मिलने वाला थर्ड पार्टी व्हीकल इंश्योरेंस। इससे क़ानूनी जरुरत तो पूरी हो जाती है लेकिन अगर सड़क दुर्घटना में गाड़ी को नुकसान पहुँचा या सड़क पर खड़ी कार चोरी हो गई, तो सोंचिए कॉम्प्रिहेन्सिव कार इंश्योरेंस का प्रीमियम भरना ज्यादा बेहतर था या चोरी हो चुकी कार का नुकसान उठाना।
- इंश्योरेंस को इन्वेस्टमेंट की तरह खरीदना -इंश्योरेंस का बेसिक काम है रिस्क को कवर करना। परन्तु देखने में यह आता है कि कभी- कभी इंश्योरेंस प्लान की बारीकियों में जाते- जाते व्यक्ति उसके इन्वेस्टमेंट से जुड़े फायदे से ज्यादा लाभ कमाना चाहता है और अपनी इंश्योरेंस से जुडी जरुरत को थोड़ा नज़रअंदाज़ कर देता है। एक वस्तु से जब दो तरह का काम लेने की कोशिश की जाएगी तो कहीं न कहीं उसके असर में कमी भी तो देखने को मिलेगी। जैसे सिर्फ लाइफ इंश्योरेंस का प्लान न लेकर अगर 25 हजार रुपये लगभग के प्रीमियम का एन्डोमेन्ट प्लान लिया जाता है तो इसमें लाइफ इंश्योरेंस का कवर सिर्फ़ ढाई से तीन लाख के आसपास ही मिलेगा, जो समय पड़ने पर परिवार के प्रति जो भी जिम्मेदारियाँ हैं उसे पूरा करने के लिए कुछ भी नहीं है । उचित तो यह है कि इंश्योरेंस और इन्वेस्टमेंट अगर दोनों साथ में चाहिए तो कम प्रीमियम वाला टर्म प्लान और साथ में ELSS जैसा इन्वेस्टमेंट का साधन अपनाकर दोनों का भरपूर फायदा उठाया जाए।
- इंश्योरेंस खरीदने में बेवजह की देरी करना - 24 से 28 साल की उम्र में जब पहली बार नौकरी लगती है तो इंश्योरेंस खरीदना लिस्ट में पहले नंबर पर नहीं होता क्योंकि इंश्योरेंस का महत्व और उसके फायदे आज भी आम चर्चा का विषय नहीं है। अभी मुझे क्या होगा, यह ख्याल इंश्योरेंस खरीदने में देरी की वजह बनता है। वह घर खरीदेगा, उसकी साज- सज्जा करेगा, पर होम इंश्योरेंस के बारे में गौर नहीं करेगा, जो उसके इतने महँगे इन्वेस्टमेंट को आर्थिक सुरक्षा देने का काम करेगा। कुछ बातों के लिए हम देर से जागते हैं। जब पत्नी की डिलीवरी पर पैसा खर्च होता है तब एहसास होता है कि अगर हेल्थ इंश्योरेंस समय पर ले लिया होता तो आज यह सब खर्चा उसी में कवर हो जाता। मुसीबत और बीमारी तो बता कर नहीं आते पर लाइफ इंश्योरेंस, हेल्थ इंश्योरेंस, होम इंश्योरेंस, व्हीकल इंश्योरेंस जैसे तमाम तरह के इंश्योरेंस तो हम समय से खरीद सकते हैं ताकि जब कभी अचानक बीमारी से सामना हो, या गाड़ी के एक्सीडेंट की वजह से लीगल लायबिलिटी का मामला बन जाए, या दुर्घटना की वजह से कमाने में असमर्थ हो जाएँ तो सिर्फ यह इंश्योरेंस ही है जो एक वफादार मित्र की तरह मुश्किल की घडी में साथ निभायेगा।
- इंश्योरेंस को कम्पेयर किये बगैर खरीदना- बाजार में कई इंश्योरेंस कम्पनियाँ मौजूद हैं जो हर तरह के इंश्योरेंस प्रोडक्ट ग्राहकों को प्रस्तुत कर रही हैं। अब इनमें से वह कौन सी इंश्योरेंस कंपनी है जिससे बीमा लेना ठीक रहेगा, यह जानने के लिए इन कंपनियों के प्लान की आपस में तुलना करना बेहद आवश्यक है। कौन सी कंपनी कम प्रीमियम पर अधिक कवरेज दे रही है, किस कंपनी का क्लेम सेटलमेंट रेश्यो अच्छा है, क्योंकि बीमा खरीदने की असली वजह आखिर क्लेम पाना ही तो है। इसके अलावा यह जानना भी जरुरी है कि ग्राहक अपने क्लेम से कितना संतुष्ट है, कंपनी की आर्थिक स्थिति कैसी है, कौन है जो 24 घण्टे कस्टमर सर्विस देता है। इसके साथ ही इंश्योरेंस कंपनी के बारे में लोगों का रिव्यु भी जरूर पढ़ना चाहिए।
- लोगों की सलाह पर इंश्योरेंस खरीदना- जैसे हाथ की पाँचों उँगलियाँ समान नहीं होती वैसे ही सब लोगों पर एक ही तरह का इंश्योरेंस प्लान फिट नहीं बैठता। जो प्लान मित्र ने लिया है जरुरी नहीं कि वह आपके लिए भी काम करे। इसी तरह इंश्योरेंस एजेंट को भी यह थोड़े ही न मालूम होगा की समय समय पर आप बाइक का मॉडिफिकेशन कराएँगे और उसमें महँगी एक्सेसरीज भी लगाएँगे। इसलिए जानकारी इकट्ठी करना तो अच्छी बात है, लेकिन उसके बाद आप ही हैं जिसे यह बेहतर मालूम है कि कौन सा इंश्योरेंस आपके लिए बेहद जरुरी है, इंश्योरेंस के लिए बजट कितना है, अगर हेल्थ इंश्योरेंस लेना है तो परिवार में कौन सी बीमारी है जो हेरिडिटी है, बच्चे के भविष्य को लेकर आपकी योजनाएँ क्या हैं, और उन्हें साकार करने के लिए कितने रुपियों की जरुरत पड़ेगी, क्या बुढ़ापे के लिए पेंशन प्लान लेने का विचार है, आदि।
- एक्सकलूज़न पर ध्यान न देना- हर प्रकार के इंश्योरेंस में किसी न किसी तरह के एक्सकलूज़न पाए जाते हैं। एक्सकलूज़न का मतलब है वह रिस्क या वह हालात जो इंश्योरेंस में कवर नहीं किए जाते। अगर व्हीकल इंश्योरेंस की बात करें तो समय के साथ गाड़ी में होने वाला वियर एंड टिअर, मैकेनिकल खराबी, टायर का ख़राब होना इसके एक्सकलूज़न में शामिल हैं। इसी तरह हेल्थ इंश्योरेंस में प्री -एग्ज़िस्टिंग डिजीज, कॉस्मेटिक सर्जरी, आत्महत्या से जुड़े इलाज एक्सकलूज़न में आते हैं। हरेक प्रकार के इंश्योरेंस में जितने भी प्रकार के एक्सकलूज़न पाये जाते हैं, उन सब की जानकारी इंश्योरेंस कंपनी से जरूर प्राप्त करनी चाहिए क्योंकि यही सब छोटी- छोटी बातें आगे चल कर क्लेम के समय बड़ी समस्या का रूप धारण कर लेती हैं।
- कैपिंग और सब लिमिट पर ध्यान न देना- कई ऐसे इंश्योरेंस हैं जिनमें सब- लिमिट के क्लॉज़ पाए जाते हैं। इसमें हेल्थ इंश्योरेंस प्रमुख है। हेल्थ इंश्योरेंस में कई बीमारियों के इलाज में मिलने वाले पैसों पर सब लिमिट होता है, इसका मतलब है कि यदि किसी बीमारी के इलाज के लिए तीस हज़ार रुपिए का सब लिमिट है और उस बीमारी पर पैंतीस हज़ार रुपिए खर्च हो जाते हैं तो सब लिमिट की वजह से पाँच हज़ार रुपिए आपको अपनी जेब से भरना पड़ेगा। इसी तरह हॉस्पिटल के कमरे के किराये में कैपिंग होती है। अगर कैपिंग के बारे में विस्तार से मालूम न हो तो अनजाने में अस्पताल का बिल बहुत ज्यादा बड़ जाता है। इसलिए जहाँ- जहाँ कैपिंग और सब- लिमिट का क्लॉज़ हो, उससे जुड़ी पूरी जानकारी जरूर प्राप्त करें।
- जरुरी जानकारियाँ छुपाना- इंश्योरेंस कंपनी से जानकारियाँ छुपाना बेहद हानिकारक साबित होता है। यह इंश्योरेंस क्लेम को रदद भी कर सकता है, या उसमें कमी ला सकता है। अगर बात करें हेल्थ इंश्योरेंस की तो इंश्योरेंस खरीदते समय जानकारी के कॉलम में पहले हो चुकी किसी बीमारी या ऑपरेशन की बात अगर छुपाई जाती है या प्री- एग्ज़िस्टिंग डिजीज के बारे में नहीं बताया जाता, और इलाज के दौरान वह बात सामने आ जाती है तो इंश्योरेंस कंपनी पूरा का पूरा क्लेम रदद कर सकती है। इसी तरह होम इंश्योरेंस में इंश्योरेंस कंपनी को अगर यह जानकारी नहीं दी जाती कि घर के एक हिस्से से कारोबार भी चलाया जाता है, तो घर में दुर्घटना होने की स्थिति में, और यह बात सामने आने पर इंश्योरेंस कंपनी क्लेम से हाथ पीछे खींच सकती है।
- बेवजह के ऐड ऑन लेना - ऐड ऑन इंश्योरेंस के कवर का दयरा बढ़ाता है, लेकिन हर एक ऐड ऑन के लिए प्रीमियम में कुछ अतिरिक्त पैसा भी देना पड़ता है। जैसे किसी व्यक्ति ने कार खरीदा पर न तो उसे एक्सेसरीज़ लगाने का शौक है, और न ही कार मॉडिफाई कराने की इच्छा। तो एक्सेसरीज़ का ऐड ऑन लेने का क्या फायदा। इसी प्रकार विदेश यात्रा पर जाते समय ट्रेवल इंश्योरेंस ख़रीदा है, और एजेंट के कहने पर रेंटल कार इंश्योरेंस का ऐड ऑन साथ में ले तो लिया, पर जब इंटरनेशनल लाइसेंस ही नहीं है, तो विदेश में कार कैसे ड्राइव करेंगे, फिर इस ऐड ऑन को प्लान में शामिल करना पैसे की बर्बादी नहीं तो और क्या है। इसलिए उन्हीं ऐड ऑन को प्लान में शामिल करें जो वाकई जरुरी हैं।
अगर इन सब बातों की पहले से जानकारी होगी तो कोई भी व्यक्ति इंश्योरेंस प्लान को बेहतर ढंग से खरीद सकता है।